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CHIKITSA ME PATHYA KA MAHATTVA

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कामशास्त्र का महत्त्व

                            रथ चाहे कितना भी सुन्दर क्यों नहीं हो परन्तु उसका एक  पहिया कमजोर हो तो दूसरे पहिये के मज़बूत होने पर भी यात्रा को सुरक्षित नहीं कहा जा सकता हैं A सुरक्षित यात्रा के लिए रथ के दोनों पहियों का मज़बूत होना आवश्यक हैं A इसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी एक यात्रा हैं जो दाम्पत्य रुपी रथ के सहारे पूरी होती हैं A पति और पत्नी इस दाम्पत्य रुपी रथ के दो पहिये हैं और इन दोनों की काम कुशलता ही जीवन को सफल बनाने का आधार हैं A                                    यदि स्त्री और पुरुष इन दोनों में से किसी एक को कामशास्त्र से दूर रखा जाये और केवल एक को कामशास्त्र के अध्ययन का अधिकार दिया जाये तो एक पक्ष की अनभिज्ञता ही दूसरे पक्ष की भिज्ञता को अर्थहीन बना देती हैं सबसे बड़ी बात यह हैं की काम सम्बन्धी विषय में सफल होना पूर्णतः दूसरे पक्ष पर भी निर्भर करता हैं ] अतः दोनों पक्षों को इसका ज्ञान होना परमावश्यक हैं A लड़कों और लड़कियों को किशोरावस्था प्राप्त होते ही कामशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए ] यदि विवाह हो चुका हो तो भी एक दूसरे की सम्मति या आज्ञा से कामशास्त्र का अध

‘‘आयुर्वेद चिकित्सा में अनुपान की अवधारणा‘‘

                ‘‘अनु पश्चात् सह वा पीयते इत्यनुपानम्‘‘।               अर्थात औषधि या भोज्य पदार्थों के सेवन के साथ या पश्चात् जो द्रव (शीत-उष्ण जल ,दुग्ध, तक्र्र ,स्वरस, क्वाथ ,मद्य, काशी,घृत,तैलादि )पदार्थ पान किया जाता हैं,उसे अनुपान कहते हैं।                         अगस्त्य जैसे उग्रतया ऋषि द्वारा वातापि नामक राक्षस को खा लेने पर उसको पचाने के लिये अनुपान की आवश्यकता हुयी थी तो हम जैसे सामान्य प्राणियों का भोजन विना अनुपान के कैसे पच सकता हैं निःसन्देह अनुपान के विना भोजन का पचना अत्यन्त कष्टतम कार्य है। जैसे जल में तैल की बुन्द डालने पर तैल शीघ्रता  से जल के चारों ओर फैल जाता हैं,उसी प्रकार औषधि का भी अनुपान के साथ सेवन किये जाने पर औषध शिघ्रता से शरीर में फैलकर अपना प्रभाव डालती हैं।                             रोग के अनुसार यदि सही अनुपान के साथ औषधियों का प्रयोग किया जाता हैं तो वह औषधि उक्त अनुपान के कारण अधिक गुणशाली हो जाती हैं। औषधियों एवं आहार को अनुपान के साथ सेवन करने से औषधियॉ शीघ्र ही विलीन होकर सम्पूर्ण शरीर में फैल जाती हैं,और अपना औषध-कर्म करती हैं। रसौषधियॉं ए