कामशास्त्र का महत्त्व


                          रथ चाहे कितना भी सुन्दर क्यों नहीं हो परन्तु उसका एक  पहिया कमजोर हो तो दूसरे पहिये के मज़बूत होने पर भी यात्रा को सुरक्षित नहीं कहा जा सकता हैं A सुरक्षित यात्रा के लिए रथ के दोनों पहियों का मज़बूत होना आवश्यक हैं A इसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी एक यात्रा हैं जो दाम्पत्य रुपी रथ के सहारे पूरी होती हैं A पति और पत्नी इस दाम्पत्य रुपी रथ के दो पहिये हैं और इन दोनों की काम कुशलता ही जीवन को सफल बनाने का आधार हैंA
                                  यदि स्त्री और पुरुष इन दोनों में से किसी एक को कामशास्त्र से दूर रखा जाये और केवल एक को कामशास्त्र के अध्ययन का अधिकार दिया जाये तो एक पक्ष की अनभिज्ञता ही दूसरे पक्ष की भिज्ञता को अर्थहीन बना देती हैं सबसे बड़ी बात यह हैं की काम सम्बन्धी विषय में सफल होना पूर्णतः दूसरे पक्ष पर भी निर्भर करता हैं] अतः दोनों पक्षों को इसका ज्ञान होना परमावश्यक हैंA लड़कों और लड़कियों को किशोरावस्था प्राप्त होते ही कामशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए ] यदि विवाह हो चुका हो तो भी एक दूसरे की सम्मति या आज्ञा से कामशास्त्र का अध्ययन करना चाहिएA   
                                 कामसूत्रकार महर्षि वात्स्यायन का विचार हैं कि एक लड़की को किसी विश्वासी वृद्ध दासी ] विश्वस्त सहेली अथवा बड़ी बहन आदि से एकांत  में कामकला और कामकला से सम्बंधित ६४ कलायों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिएA ये काम कलाएं मात्र सम्भोग सम्बन्धी कला से ही सम्बंधित नहीं होती  हैं  बल्कि जीवन को सवांरने से भी सम्बंधित होती हैंA यदि स्त्री और पुरुष इन ६४ कलायों का ज्ञान प्राप्त करके अपने जीवन में उतारे तो दैनिक पारिवारिक जीवन भी सुवासित हो जाता हैं A इन कलायों से पूर्ण स्त्रियाँ अपने पति के साथ साथ अन्य पुरुषों के दिल पर भी राज करने की क्षमता रखती हैं और पुरुष भी इन कलायों को धारण करता हो तो अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों के आकर्षण का केंद्र बन जाता हैं A
                                   काम संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है आनंद की इच्छा या आकांक्षा। काम को सीधे तौर पर संभोग या सेक्स कहते हैं। हिंदुओं के प्रेम के देवता कामदेव के नाम से इस शब्द की उत्पत्ति मानी गई है। भारतीय कामशास्त्र काम अर्थात संभोग और प्रेम करने की कला का शास्त्र है।   कामशास्त्र में काम उस सुखानुभूति को कहते हैं जो सफल सम्भोग से नायक नायिका (नर-नारी ) को प्राप्त होता हैं अर्थात स्त्री - पुरुष  सफल सम्भोग से जिस आनंद को प्राप्त करते हैं वहीँ काम हैं A सफल सम्भोग से प्राप्त सुख को पाने की प्रबल इच्छा भी काम हैं अर्थात सफल सम्भोग से स्त्री - पुरुष आत्मसंतुष्टि आत्मानंद का अनुभव करते हैं ] इस आनंद को प्राप्त करने की जो अभिलाषा होती हैं उसे ही शास्त्रों में काम कहा गया हैंA सफल सम्भोग वह हैं जिसमें दोनों पक्ष सम्भोग के लिए सामान रूप से इच्छुक हो और सम्भोग के अंत में दोनों पक्ष एक समान रूप से  साथ स्खलित हो ] इस प्रकार के सम्भोग में वस्तुतः  दोनों पक्ष समान रूप से संतुष्ट होते हैंA
                              हमें दुःख हैं की कामशास्त्र को अपना महत्त्व अभी तक नहीं मिल पाया हैं ] हम सभी इसे जानना चाहते हैं] इसके सम्बन्ध में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं इसलिए लूके छिपे इस सम्बन्ध में जो सही  कहीं से प्रकाशित किया हुआ मिल जाता हैं उसे गुप्त रूप से पढ़ना भी चाहते हैं लेकिन जब अपने बच्चों को उसी ग्रन्थ के पन्ने पलटते देखते हैं तो किताब हाथ से खिंच लेते हैं उसे डांटते ] फटकारते हैं जैसे उसने कोई बहुत बड़ा पाप किया हो A यही कारण हैं कि इसे जानकर भी सभी इससे अनजान रह जाते हैं जीवन सूना का सूना रह जाता हैं A काम की जानकारी तभी होगी जब माँ बेटी को शिक्षा देगी और पिता पुत्र को शिक्षा देगाA  अगर स्कूल में नहीं भी तो] कॉलेज में इसके प्रमाणिक ज्ञान देने  की व्यवस्था होनी चाहिएA इस प्रकार की व्यवस्था होना जीवन संवारने की कला सिखाना प्रमाणित होगाA . कामशास्त्र की महत्ता को समझते हुए क्लीमेंट ऑफ़ अलेक्ज़ेन्ड्रिया में कहा गया हैं ------               **     हमें उसका नाम लेते हुए शर्म नहीं आनी चाहिए] जिसका सृजन करते हुए इश्वर को शर्म नहीं आई ] हमें यौन अंगों को पवित्र वस्तुयों में समझाना चाहिए A** 
                         भारतीय परम्परा में जीवन का ध्येय है पुरुषार्थ। पुरुषार्थ चार प्रकार का माना गया है- धर्म] अर्थ] काम और मोक्ष। इन चार को दो भागों में विभक्त किया है& 1 धर्म और अर्थ। 2- काम और मोक्ष। काम का अर्थ है सांसारिक सुख और मोक्ष का अर्थ है सांसारिक सुख-दुःख और बंधनों से मुक्ति। इन दो पुरुषार्थ esa काम और मोक्ष के साधन हैं अर्थ और धर्म। अर्थ से काम और धर्म से मोक्ष साधा जाता है। हिंदू धर्म मानता है कि चारों पुरुषार्थ जीवन जीने की कला के क्रम हैं। यदि आप सिर्फ किसी एक पुरुषार्थ पर ही बल देने लगते हैं तो जीवन विकृत हो जाता है। मसलन की यदि सिर्फ धर्म ही साधने में लगे रहे तो संसार तो छूट ही जाएगा और श्रेष्ठ संन्यासी भी नहीं हो सकते क्योंकि हमने सुना है कि ज्यादातर साधुओं को सुंदर स्त्रियों के सपने सताते हैं। इसीलिए हिंदुत्व को एक श्रेष्ठ व संतुलित जीवन जीने की पद्धत्ति कहा गया है। यदि कोई काम पर ही अति ध्यान देने लगता है तो समाज में उसकी प्रतिष्ठा गिरती जाएगी और अतिकामुकता के चलते वह शारीरिक क्षमता खो बैठेगा। सिर्फ अर्थ पर ही ध्यान दिया तो व्यक्ति संबंध और रिश्ते खो बैठता है। इससे उसका सामाजिक और पारिवारिक जीवन खत्म हो जाता है। रुपए को महत्व देने वाले कितनों के ही रिश्ते सिर्फ नाममात्र के होते हैं। ऐसे में चारों पुरुषार्थ का संतुलन ही जीवन को जीवन बनाता है।
                          हिंदू जीवन दर्शन में काम की भूमिका एवं उसके महत्व को सहज भाव से स्वीकारा गया है। उसे न तो गोपनीय रखा गया और न ही वर्जित करार दिया गया। इतनी महत्वपूर्ण बात जिससे सृष्टि जन्मती और मर जाती है इससे कैसे बचा जा सकता हैA इसीलिए धर्म और अर्थ के बाद काम और मोक्ष का महत्व है। धर्म का ज्ञान हमें जीवन में सही और गलत की शिक्षा देता है। ब्रह्मचर्य आश्रम में सभी तरह के ज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। उसी के बाद अर्थोपार्जन के साथ ही काम कला में पूर्णता प्राप्त करते हुए मोक्ष के द्वार खुलते हैं। जीवन को चार भाग में बाँटकर इस चार कदम की संपूर्ण व्यवस्था निर्मित की गई थी।
                                               कहते हैं कि नंदी ने भगवान शंकर और पार्वती के पवित्र प्रेम के संवादों को सुनकर कामशास्त्र लिखा। कामसूत्र के रचनाकार का मानना है कि दाम्पत्य उल्लास एवं संतृप्ति के लिए यौन-क्रीड़ा आवश्यक है। वास्तव में सेक्स ही दाम्पत्य सुख-शांति की आधारशिला है। काम के सम्मोहन के कारण ही स्त्री-पुरुष विवाह सूत्र में बँधने का तय करते हैं। अतः विवाहित जीवन में काम के आनन्द की निरन्तर अनुभूति होते रहना ही कामसूत्र का उद्देश्य है। जानकार लोग यह सलाह देते हैं कि विवाह पूर्व कामशास्त्र और कामसूत्र को नि:संकोच पढ़ना चाहिए। ओशो कहते हैं कि सुख तो एक उत्तेजना है और दुःख भी। प्रीतिकर उत्तेजना को सुख और अप्रीतिकर को हम दुःख कहते हैं। आनंद दोनों से भिन्न है। वह उत्तेजना की नहीं शांति की अवस्था है। सुख को जो चाहता है वह निरंतर दुःख में पड़ता है। क्योंकि एक उत्तेजना के बाद दूसरी विरोधी उत्तेजना वैसे ही अपरिहार्य है जैसे कि पहाड़ों के साथ घाटियाँ होती हैं और दिनों के साथ रात्रियाँ। किंतु जो सुख और दुःख दोनों को छोड़ने के लिए तत्पर हो जाता है वह उस आनंद को उपलब्ध होता है जो कि शाश्वत है। अत: संभोग की चर्चा से कतराना या उस पर लिखी गई श्रेष्ठ किताबों को न पढ़ना अर्थात एक विषय में अशिक्षित रह जाना है। कामशास्त्र या कामसूत्र इसलिए लिखा गया था कि लोगों में सेक्स के प्रति फैली भ्रांतियाँ दूर हों और वे इस शक्ति का अपने जीवन को सत्यम] शिवम और सुंदरम बनाने में अच्छे से उपयोग कर सकें।

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